Tuesday, November 2, 2010

हिन्दुत्व विरोधी सरकार

वोट की राजनीति के लिए संप्रग सरकार का हिन्दुत्व विरोध एक बार फिर खुलकर सामने आया है। इस सरकार के गृहमंत्री ने मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने के लिए "भगवा आतंकवाद" जैसा शब्द गढ़कर भारत की सनातन संस्कृति को लांछित करने में भी हिचक नहीं दिखाई, और जो सरकार जिहादी आतंकवाद की सैकड़ों घटनाओं में हजारों निर्दोष नागरिकों के मारे जाने के बावजूद आतंकवाद को किसी मजहब से जोड़कर देखने व उससे सख्ती से निपटने से बचती रही, आज वह "भगवा आतंकवाद" कह कर उससे निपटने की रणनीति बनाने का आह्वान कर रही है। राज्यों के पुलिस प्रमुखों व सुरक्षा बलों के प्रमुखों के सम्मेलन में पी. चिदम्बरम् का वक्तव्य सरकार की नीयत को स्पष्ट करने वाला है। यह बेहद शर्मनाक है कि भारत के गृहमंत्री होने के बावजूद चिदम्बरम् इस देश की सनातन संस्कृति के प्रतीक भगवा के इतिहास से भी परिचित नहीं, अगर होते तो भगवा को लांछित कभी न करते। भगवा के गौरवपूर्ण इतिहास को देखते हुए ही स्वतंत्रता के बाद देश का राष्ट्रीय ध्वज तय करने के लिए बनी झण्डा कमेटी ने भी भारत की सांस्कृतिक पहचान के रूप में भगवा ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन जवाहरलाल नेहरू की सेकुलर सोच के कारण उनकी जिद पर उसे बदला गया। भारतीय संस्कृति की त्याग, वैराग्य, सेवा, समर्पण, बंधुत्व और बलिदानी परम्परा का प्रतीक भगवा विश्व शांति व समस्त मानवता के कल्याण का मार्ग दिखाता है, उसके दर्शन मात्र से अंत:करण श्रद्धा से अभिभूत हो उदात्त भावों से आपूरित हो जाता है और जीवन में श्रेष्ठ संकल्पों का आविर्भाव होता है। लेकिन चिदम्बरम् ने अपनी क्षुद्र राजनीतिक मानसिकता के कारण भगवा को कलंकित करने का जो दुस्साहस किया है, हिन्दू समाज उसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा, क्योंकि कांग्रेस की वोट राजनीति के चलते उन्होंने भारत की समूची सांस्कृतिक परम्परा और पहचान को घृणित मंसूबों से जोड़कर कठघरे में खड़ा करने का प्रयत्न किया है। पाकिस्तान प्रेरित इस्लामी जिहाद, जो हजारों निर्दोष लोगों का रक्त बहाकर भारत के अस्तित्व को खत्म करने का दु:स्वप्न पाले हुए, राम और कृष्ण की इस पवित्र धरा पर "दारुल इस्लाम" का परचम फहराने के लिए प्रयत्नशील है, भगवा को उसके समकक्ष खड़ा करना एक सोचा-समझा राजनीतिक षड्यंत्र है। इसका तीखा विरोध होना चाहिए।
कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण के आधार पर जो राजनीति शुरू की उसने राष्ट्रहित को तो आघात पहुंचाया ही, भारत की सनातन मान्यताओं और लोकतांत्रिक परम्पराओं को भी आहत किया। उसी की शह व सहयोग पाकर वे लीगी तत्व फिर से ताकतवर बनते गए जिन्होंने मातृभूमि का विभाजन कराया। देश के कोने-कोने में फैल चुके बंगलादेशी घुसपैठिये और पिछले बीस वर्षों में भारत के लिए नासूर बन गया जिहादी आतंकवाद उसी का परिणाम है। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने सत्ता के लोभ में जो राष्ट्रघाती राजनीतिक मार्ग अपनाया, उसका अनुगमन करते हुए सत्ता की होड़ में आगे निकल जाने की लिप्सा में सेकुलर दलों का एक समूह खड़ा हो गया और वोट के लालच में मुस्लिमों को लुभाने के तरह-तरह के हथकण्डे अपनाए जाने लगे। पिछली संप्रग सरकार में मंत्री रहे एक ऐसे ही नेता ने तो ओसामा बिन लादेन का बाना बनाए लोग अपने लोकसभा चुनाव के प्रचार में उतार दिए थे और इसी नेता ने बंगलादेशी घुसपैठियों को देश की नागरिकता दिए जाने का नारा बुलंद किया था। कांग्रेस ऐसे लोगों को गले लगाकर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ती रही है। इस लोभ में उसने कभी राष्ट्रहित और हिन्दू हित की परवाह नहीं की। उल्टे उसने हिन्दू शब्द को साम्प्रदायिक रंग देने का ही प्रयत्न किया। ऐसा हो भी क्यों न, जब स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारत में हिन्दुओं के अधिकारों को नकार कर घोषणा करते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) का है। सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र आयोग और समान अवसर आयोग की सिफारिशें प्रधानमंत्री के मंतव्य को ही परिपुष्ट करने के लिए क्रियान्वित की जा रही हैं। गृहमंत्री ने तो "भगवा आतंकवाद" की बात कहकर कांग्रेस की इस कुत्सित मानसिकता से पर्दा हटा दिया है। अब तो देश के 85 प्रतिशत हिन्दू समाज को स्पष्टत: यह समझ लेना चाहिए कि इस सरकार के रहते हिन्दू हित तो कतई सुरक्षित हैं ही नहीं, इस राष्ट्र की सनातन संस्कृति और उस पर आधारित भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी यह सरकार खत्म कर देने पर तुली हुई है। संगठित और दृढ़ हिन्दू शक्ति ही इन राष्ट्रघाती षड्यंत्रों को विफल कर सकती है।